एक ख्याल ही तो हूं..
वो तेरा आंखें बंद करने पर छम से आना,और ख्वाबों से हमारा उठ के बैठ जाना, मुद्ते हो गईं चैन से सोए, पर उसी सपने का इंतज़ार आज भी है...!! किसी रोज़ शहर आए थे तेरे,गली तक आके दीदार को तरसे थे तेरे, बरामदे में खड़े तब चूम रही थी लब्ज़ को जो एक जुल्फ तेरी, उसे चेहरे से हटाने की हसरत आज भी है...!! सोचा हया उनकी इजाज़त दे तो कुछ गुस्ताखियां कर लूं, पर मेरे इरादों को देख ,घर के खिड़की के पर्दे के पीछे छिपने की तेरी वो अदा आज भी है...!! नास्तिक हो कर भी तेरे आंखों में आयतें पढ़ी मैंने, खुदा से तुझे मांग के ज़ुल्फो से शुरू हुई मोहब्बत को लबों तक लाने की इनायत आज भी है...!! वो व्हाट्सएप की गुफ्तगू,वो फोन पे बेवजह घंटों तक बतियाना, उनमें जो अनसुने से जज्बात थे छिपे,उसी से सर्द की रातों में कम्बल सी गर्माहट आज भी है...!! तेरी यादों के आखरी थे जो निशान,दिल लिखता रहा हम मिटाते रहे, जो अकेले में बैठे कहीं सुन रही हो मुझे तो सुन लो, तुम्हारी उनहीं अनजान गलियों में दिल छोड़ आने की आदत आज भी है..!! काफी हो चुका लिख लिख कर तुम्हें यूं प्यार जताना,रूबरू मिलो अपने लिखे हुऐ फसानों में तुझको ढूंढ क...